ये ज़मीं किस क़दर सजाई गई ज़िंदगी की तड़प बढ़ाई गई : साहिर लुधियानवी

ये ज़मीं किस क़दर सजाई गई
ज़िंदगी की तड़प बढ़ाई गई

आईने से बिगड़ के बैठ गए
जिन की सूरत जिन्हें दिखाई गई

दुश्मनों ही से भी तो निभ जाए
दोस्तों से तो आश्नाई गई

नस्ल-दर-नस्ल इंतिज़ार रहा
क़स्र टूटे न बे-नवाई गई

ज़िंदगी का नसीब क्या कहिए
एक सीता थी जो सताई गई

हम न अवतार थे न पैग़म्बर
क्यूँ ये अज़्मत हमें दिलाई गई

मौत पाई सलीब पर हम ने
उम्र बन-बास में बिताई गई

साहिर लुधियानवी 

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