Shayri
भूक के एहसास को शेर-ओ-सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो
जो ग़ज़ल माशूक़ के जल्वों से वाक़िफ़ हो गई
उस को अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो
मुझ को नज़्म-ओ-ज़ब्त की तालीम देना ब'अद में
पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो
ख़ुद को ज़ख़्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोके में लोग
इस शहर को रौशनी के बाँकपन तक ले चलो