कोई इस दिल का हाल क्या जानेएक ख़्वाहिश हज़ार तह-ख़ाने : शकेब जलाली

कोई इस दिल का हाल क्या जाने
एक ख़्वाहिश हज़ार तह-ख़ाने


मौत ने आज ख़ुद-कुशी कर ली
ज़ीस्त पर क्या बनी ख़ुदा जाने


फिर हुआ कोई बद-गुमाँ हम से
फिर जनम ले रहे हैं अफ़्साने


वक़्त ने ये कहा है रुक रुक कर
आज के दोस्त कल के बेगाने


दूर से एक चीख़ उभरी थी
बन गए बे-शुमार अफ़्साने


ज़ीस्त के शोर-ओ-शर में डूब गए
वक़्त को नापने के पैमाने


कितना मुश्किल है मंज़िलों का हुसूल
कितने आसाँ हैं जाल फैलाने


राज़ ये है कि कोई राज़ नहीं
लोग फिर भी मुझे न पहचाने

शकेब जलाली 

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