दश्त-ओ-दरिया के ये उस पार कहाँ तक जाती घर की दीवार थी दीवार कहाँ तक जाती : बाकी अहमदपुरी

दश्त-ओ-दरिया के ये उस पार कहाँ तक जाती 

घर की दीवार थी दीवार कहाँ तक जाती 

मिट गई हसरत-ए-दीदार भी रफ़्ता रफ़्ता 

हिज्र में हसरत-ए-दीदार कहाँ तक जाती 

थक गए होंट तिरा नाम भी लेते लेते 

एक ही लफ़्ज़ की तकरार कहाँ तक जाती 

लाज रखना थी मसीहाई की हम को वर्ना 

देखते लज़्ज़त-ए-आज़ार कहाँ तक जाती 

राहबर उस को सराबों में लिए फिरते थे 

ख़िल्क़त-ए-शहर थी बीमार कहाँ तक जाती 

हर तरफ़ हुस्न के बाज़ार लगे थे 'बाक़ी' 

हर तरफ़ चश्म-ए-ख़रीदार कहाँ तक जाती

बाकी अहमदपुरी 

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