जो मेरे लौह-ए-दिल पर तू ने कभी बनाया
था दिल जब उस पे माइल था शौक़ सख़्त मुश्किल
तर्ग़ीब ने उसे भी आसान कर दिखाया
इक गर्द-बाद में तू ओझल हुआ नज़र से
इस दश्त-ए-बे-समर से जुज़ ख़ाक कुछ न पाया
ऐ चोब-ए-ख़ुश्क-ए-सहरा वो बाद-ए-शौक़ क्या थी
मेरी तरह बरहना जिस ने तुझे बनाया
फिर हम हैं नीम-शब है अंदेशा-ए-अबस है
वो वाहिमा कि जिस से तेरा यक़ीन आया
फहमीदा रियाज़