ये किस के आँसुओं ने उस नक़्श को मिटाया जो मेरे लौह-ए-दिल पर तू ने कभी बनाया : फहमीदा रियाज़


ये किस के आँसुओं ने उस नक़्श को मिटाया
जो मेरे लौह-ए-दिल पर तू ने कभी बनाया

था दिल जब उस पे माइल था शौक़ सख़्त मुश्किल
तर्ग़ीब ने उसे भी आसान कर दिखाया

इक गर्द-बाद में तू ओझल हुआ नज़र से
इस दश्त-ए-बे-समर से जुज़ ख़ाक कुछ न पाया

ऐ चोब-ए-ख़ुश्क-ए-सहरा वो बाद-ए-शौक़ क्या थी
मेरी तरह बरहना जिस ने तुझे बनाया

फिर हम हैं नीम-शब है अंदेशा-ए-अबस है
वो वाहिमा कि जिस से तेरा यक़ीन आया

फहमीदा रियाज़ 

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